लक्ष्य - व्यास पीठ और शासन तंत्र का शोधन व म्लेच्छों से पूर्ण मुक्ति। हिंदुत्व की आड़ में फर्जी ह

जो समाज अश्लीलता का विरोध नहीं कर सकता वह बलात्कार जैसे जघन्य अपराध का खात्मा कैसे करेगा..?

जो समाज अश्लीलता का विरोध नहीं कर सकता वह बलात्कार जैसे जघन्य अपराध का खात्मा कैसे करेगा..? 125 करोड़ की आबादी वाले देश भारत में 2018 में 36 हजार रेप के केस दर्ज होते हैं जबकि वास्तविक आंकड़े इससे भी कहीं अधिक है. 32 करोड़ की आबादी वाले देश अमेरिका में 2015 में 4 लाख 31 हजार 840 बलात्कार हुए जिनमें 21 प्रतिशत गैंगरेप हुए. 2015 में यूनाइटेड किंगडम में 23851 रेप हुए जिनमें 11947 रेप बच्चों के साथ हुए. मानवता को शर्मसार कर देने वाले आंकड़े हैं यह. भविष्य में स्थिति इससे भी भयावह होने वाली है. यदि कोई अपने हाथ पैर खो देता है तो समाज को वह दिखाई पड़ता है किंतु किसी की आत्मा कराह उठती है तो उसे कौन देखेगा?
आचार्य चाणक्य ने कहा था कि......... "सब कुछ छोड़कर अपने घर की स्त्रियों को बचाओ" दुर्भाग्य....! 21वी सदी का समाज चाणक्य के इस गुढ़ वाक्य को समझ ना सका और अपनी चिता खुद सजा बैठा. हॉलीवुड फिल्म the whistle blower में बोस्निया में हुए गृहयुद्ध और उसके पश्चात होने वाले अराजकता को बड़े ही साहस के साथ दिखाया गया है. भारत के फिल्म इंडस्ट्री की औकात नहीं कि वह ऐसे विषयों पर फिल्म बना दे. whistle blower मे दिखाया गया है कि कैसे एक देश से उसका स्वाभिमान (स्त्री) लूट लिया जाता है. किस प्रकार नारी जाति की अस्मिता और उसके चरित्र को तार-तार कर दिया जाता है. प्रत्येक देश में युद्ध के बाद लगभग यही स्थिति बनती है 'बोस्निया' कोई अपवाद नहीं है. सारे देशों के हालात ऐसे ही होते हैं और यदि अब हमने जड़ पर प्रहार नहीं किया तो जीवन भर कैंडल मार्च करते रहेंगे किंतु शत्रुओं का बाल बांका भी नहीं होगा. फिल्म में स्पष्ट दिखाया गया है कि बोस्निया के युद्ध में संयुक्त राष्ट्र संघ वहां पर शांति स्थापित करने के लिए अपनी टीम भेजती है. किंतु वहां शांति कार्यों की आड़ में ह्यूमन ट्रैफिकिंग अर्थात मानव तस्करी (विशेषकर छोटी बच्चियां, लड़की और स्त्रियां) का जबरदस्त धंधा चलता है. "शान्ति" कार्यों की आड़ में अमरीका-इंग्लैंड आदि के बड़े-बड़े नेताओं, उद्योगपतियों, राजनयिकों, सेना के अफसरों, सैनिकों, आदि के साथ-साथ स्थानीय पुलिस के मिलीभगत से लड़कियों का अपहरण करके दुनियाभर के वेश्यालयों और उद्योगपतियों को सेक्स स्लेव के रूप में बेचने का कारोबार चमड़ी के दलालों द्वारा बड़े ही सुनियोजित ढंग से किया जाता है. इस महापाप के विरुद्ध आवाज उठाने वाला कोई नहीं था... कोई नहीं...! सब कुछ शासन और प्रशासन की देखरेख में चल रहा था. मानो हर एक व्यक्ति नारी देह का लुटेरा बन बैठा हो. उनकी हैवानी वासना की पूर्ति के आगे छोटी-छोटी बच्चियों की चीख उनके कान के पर्दों तक जाकर वापस लौट जाती थी. फिल्म की कहानी एक जांबाज़ अमेरिकी महिला ऑफिसर की है जिसने बोस्निया में चल रहे अनैतिक और अवैध कारोबार का खुलासा किया किंतु उसके इस साहसी कार्य के लिए उपहार के तौर पर संयुक्त राष्ट्र संघ की नौकरी से हटा दिया जाता है. एक सत्यवादी और निष्ठावान महिला की भांति अमेरिकन ऑफिसर ने इस पूरे मकड़जाल को समझ लिया था. बोस्निया की मासूम बच्चियों और लड़कियों का दरिंदगी से यौन शोषण किया जा रहा था किंतु वह जांबाज़ महिला अधिकारी उनमें से एक भी बच्ची को उस नर्क से निकाल नहीं पाती हैं. महिला अधिकारी उस स्थान पर अपने पुलिस अधिकारियों के साथ पहुंच जाती है जहां सैकड़ों की संख्या में लड़कियां सेक्स स्लेव बनाकर रखी गई थी. किंतु छुड़ाई गई लड़कियां तब दहशत में आ जाती है जब वह महिला पुलिस अधिकारी के साथ आए हुए पुरुष पुलिस अधिकारियों को देखती है क्योंकि यह पुरुष पुलिस अधिकारी ही उन लड़कियों को दलालों के पास लाए थे. एक भी लड़की उस महिला पुलिस ऑफिसर्स के साथ जाने को तैयार नहीं हुई. आंकड़े बताते हैं कि 50 हजार महिलाओं का यौन उत्पीड़न किया गया था. आज अपनी नौकरी से हाथ गवाकर वह महिला नीदरलैंड में अपना शेष जीवन बिता रही है. उसके सारे मित्रों ने भी उसे धोखा दे दिया, क्योंकि सबको नौकरी बचानी थी. सबको अपनी पत्नी और बच्चे प्यारे थे किंतु दूसरे की पत्नी और बच्चे नहीं. हर एक ने इस जघन्य अपराध में सिस्टम का साथ दिया, वही सिस्टम जो चमड़ी की दलाल थी. बोस्निया में"सरकारी" अफसरों ने अपनी खाल बचाने के लिए "Democra" नाम की एक ब्रिटिश निजी कम्पनी को बोस्निया में संयुक्त राष्ट्रसंघ और अमरीकी कार्यों के ढेर सारे ठेके दिए और उस निजी कम्पनी की आड़ में नारी देह का शोषण चलता रहा. फिल्म के अन्त में कहा गया है कि अफगानिस्तान, ईराक, सीरिया, आदि के युद्धों में भी पश्चिमी देशों द्वारा निजी कम्पनियों को ठेके दिया जाते हैं जो पता नहीं क्या-क्या करती रहती हैं -- इसकी कोई निगरानी नहीं होती. फिल्म ने यह भी जानकारी दी है कि पूरी दुनिया में लगभग पच्चीस लाख लड़कियां हर वर्ष #ह्यूमन_ट्रैफिकिंग की शिकार बनती हैं. युद्ध तो पुरुष की जिस्मानी भूख की पूर्ति का एक बहाना है और युद्ध रोज होते भी नहीं! किंतु सालों भर 24 घंटे जो जघन्य अपराध और कुकृत्य बड़े-बड़े बुद्धिजीवियों द्वारा किया जा रहा है और उसका शिकार छोटी सी बच्ची से लेकर अधेड़ स्त्री तक हो जाती है. यही वह असली नरपिशाच है जिन्हें आपको पहचानना होगा. यह बिन लादेन और दाऊद इब्राहिम से अधिक खतरनाक लोग हैं. जो नारी के अधिकारों की रक्षा के बहाने पूरे समाज को नंगा और बेशर्म बनाना चाहते हैं. क्योंकि इसके बिना पोर्न इंडस्ट्री कैसे चलेगी? यह वही लोग है जब सरकार अश्लील साइटों पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास करती है तो मौलिक अधिकारों के नाम पर सड़कों पर उतर जाते हैं. समलैंगिकता का समर्थन करते हैं और स्त्री को कम कपड़ा पहनने के समर्थन में तरह तरह के आंदोलन करते हैं. जिन्हें हर दिन बिस्तर पर एक नई लड़की चाहिए वह तो खुलकर चाहेगा ही कि समाज में बेशर्मी बढ़े, नंगापन बढ़े. विश्व के कोने कोने में चमड़ी के पुजारियों को निरंतर यौन चरम आनंद मिलता रहे उसके लिए सोचे समझे षड्यंत्र के तहत हमारे देश मे नंगापन और अश्लीलता की संस्कृति का बढ़ावा बुद्धिजीवी वर्ग द्वारा दिया जा रहा है. यह बुद्धिजीवी वर्ग मीडिया, साहित्य, क्रिकेट, बॉलीवुड, न्यायालय, प्रशासन आदि महत्वपूर्ण स्थानों पर फैले हुए हैं. यह वर्ग ओसामा बिन लादेन, बगदादी और दाऊद इब्राहिम से भी अधिक खतरनाक है जो किसी दीमक की भांति देखते ही देखते पूरे राष्ट्र को चट कर जाता है. बांग्लादेश के सबसे बड़े सेठ "प्रिंस" का कारोबार "ह्यूमन ट्रैफिकिंग" है जिसे वह "माइग्रेशन इंडस्ट्री" कहता है, जो कई देशों और राज्यों की सरकारों के सहयोग से फलफूल रहा है, भारत में भी अधिकाँश घुसपैठ उसी ने कराये हैं. कई देशों की सेनाओं और शीर्षस्थ नेताओं, उद्योगपतियों तथा चमड़ी के भूखे नंगो को ढाका का वह सेठ लड़कियों की आपूर्ती करता है, अतः किसी सरकार की हिम्मत नहीं है जो उसपर कार्यवाई करे. जिधर दृष्टि डालिए सभी हैवानियत के सौदागर मिलेंगे. संख्या के हिसाब से बांग्लादेश संसार भर में "ह्यूमन ट्रैफिकिंग" का सबसे बड़ा आपूर्ति-कर्ता है ! 1971 में पाकिस्तान की आबादी साढ़े पाँच करोड़ और बांग्लादेश की साढ़े सात करोड़ थी, आज पाकिस्तान की उन्नीस और बांग्लादेश की साढ़े सोलह करोड़ है ! बांग्लादेश से लगभग नौ करोड़ लोग "लापता" हो गए ! उनमें से दो तिहाई भारत में है और शेष अधिकांश अरब वाले देशों के धनपतियों के आलीशान महलों के भीतर गुलामी करते हैं जहाँ किसी पत्रकार और प्रशासन तंत्र के पहुंचने औकात नहीं. अमरीका के अधिकाँश सैनिक दूसरे देशों में शांति स्थापित करने की आड़ में या समुद्रों में तैनात रहते हैं -- अपने घर से दूर अपनी पत्नियों से दूर. उनकी जिस्मानी भूख मिटाने के लिए उन्हें लड़कियों की आपूर्ति ये लोग ही करते हैं, अतः किसकी मजाल है कि कार्यवाई करे. युद्ध-काल में सेना को लंबे समय तक घरों से बाहर रहना पड़ता है. आपको स्मरण करा दूं कि द्वितीय विश्व युद्ध में रशियन सेना ने मात्र 24 घंटे के अंदर 2 लाख जर्मन महिलाओं का बलात्कार किया था. इससे पहले हिटलर की नाजी सेनाओं ने यहूदी महिलाओं के साथ ऐसा ही क्रूरतापूर्ण यौन अत्याचार किया था. विश्वास ना हो तो कंसंट्रेशन कैंप पर आधारित फिल्मों को YouTube पर देखें आपका दिल दहल जाएगा. किस प्रकार बंदी बनाई गई लड़कियों के साथ अमानवीय यौन यातनाएं दी जाती थी. समाज में जब भी अराजकता बढ़ती है तो इस का बड़ा खामियाजा स्त्रियों को चुकाना पड़ता है. इतिहास में होनेवाले 2,000 से अधिक सामूहिक "जौहर" इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. यदि हमने जड़ों पर प्रहार नहीं किया तो नारी अस्मिता की रक्षा एक दिवास्वप्न होगा. जो समाज अश्लीलता का विरोध नहीं कर सकता वह बलात्कार जैसे जघन्य अपराध का खात्मा कैसे करेगा..? 5 वर्ष पूर्व की लेखनी "नया भारत गढ़ो"
#अखिल भारत हिंदू महासभा #अभिनव भारत

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